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तीसरा अध्याय।
MAMAN
मैं अपने पहले भवमें भवदेव नाम वैश्य-पुत्र था । इस भवमें मैंने वैर-विरोधके कारण रतिवेगा और सुकान्तको मार डाला था। इसके बाद मर कर जब वे कबूतर हुए तब मैं मार्जार हुआ और मार्जारके भवमें भी मैंने उन्हें मार खाया । इसके बाद वे हिरण्यवर्मा और प्रभावती हुए तथा मैं विद्युच्चोर हुआ । इस बार भी मैने उन्हें जलती हुई आगमें डाल कर जला डाला था। उस पाप महापापके कारण मैं दुःखोंके स्थान नरकमें जा पड़ा; और वहाँ मुझे बड़े भारी दुःख भोगने पड़े।सच है पापसे जीवोंको सभी दुःख सहने पड़ते हैं। नरकसे निकल कर मुझे संसारमें जो चक्कर लगाना पड़ा है उसके भयसे मेरा आत्मा अब भी अत्यन्त भयभीत हो रहा है। इस विचित्र कथाको सुन उन देवोंको सब बातोंका ज्ञान हो गया । वे संसारको वहुत ही बुरा समझने लगे । इसके बाद रागरंगमें मस्त और साता-वेदनी-रूप सागरमें गोते लगानेवाले वे देव स्वर्गको चले गये । उनके चले जाने बाद निर्भय, परन्तु फिर भी संसारसे भयभीत भीम महामुनीने वारह भावनाओं का चिन्तन कर
और अधाकरण, अपूर्वकरण तथा अनिवृत्तिकरण परिणामोंके द्वारा पाप-कर्मोंको हलका कर क्षायिकसम्यक्त और क्षायिक चारित्र प्राप्त किया । एवं विघ्न वाधा-रूप मेघोंको उड़ानेके लिए वायुके समान और घाति-कर्मोंके घातक उन महामुनिने केवलज्ञान प्राप्त कर तथा कुछ समय बाद अघाति काँको भी घात कर वे मोक्षके अनंत सुखके भोक्ता हो गये।
यहॉ सुलोचना जयकुमारको याद दिलाती है कि हे नाथ ! उस समय हम भी उन महामुनिकी वन्दनाको गये थे और वन्दना कर वापिस स्वर्गको चले गये थे । इसके बाद स्वर्गसे चय कर हम लोग इस भरत क्षेत्रमें पैदा हुए हैं। आप भरत चक्रवर्तीके सेनापति और सोमप्रभ राजाके पुत्र हुए; एवं जयलक्ष्मीके भी पति हुए। और मैं महाराज अकंपनकी पुत्री हुई, जिनके भयसे शत्रु लोग कॉपते है, जो परम दयालु हैं, सुन्दर रूपवाले है, तथा जो दूसरोंसे नष्ट न होनेवाले मजाके कष्टोंको प्रीतिसे दूर करनेवाले हैं। नाथ ! यही कारण है कि आज कबूतरोके जोड़ेको देख कर आप तो ' हा प्रभावती' कह कर मूर्छित हो गये और मैं उसी भवके अपने स्वामी रतिवेगको याद कर ' हा रतिवेग' कह मूर्छित हो गई। इस प्रकार यहाँ हम क्रीड़ा करनेवाले सुन्दर और लज्जाशील दम्पती हुए है;
और निमित्त पाकर इस समय हमें जाति-स्मरण भी हो गया है । इस प्रकार सुलोचनाने पूर्व भवकी सब बातें कह सुनाई, जिन्हें सुन कर जयकुमारको वड़ा सन्तोप हुआ। सच है स्त्रीके वचनोंसे कौन प्रसन्न नहीं होता। इसके बाद वे मन