Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
View full book text
________________
२२ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां बनावे तो पण ते जिनवरना चरणांगुष्ठना रूपना जोडे आवी शके नहि, चरणांगुष्ठ आगल ते कोलशा जेवो देखाय. जिनेश्वरोना रूपथी गणधर १, आहारकशरीरी २, अनुत्तरवासीदेव ३, ग्रेवेयकदेव ४, कल्पवासीदेव ५, ज्योतिष्कदेव ६, भवनपतिदेव ७, व्यन्तरदेव ८, चक्रवर्ती ९, वासुदेव १०, बलदेव ११, मांडलिक १२, आ बार ठेकाणा रूपमां हीन हीन समजवा.
राजाथी बमणो बलदेवमां, तेथी बमणो वासुदेवमां, तेथी बमणो चक्रवर्तीमां बल ( पराक्रम ) होय छे. पण जिनेश्वरोमां अनन्त बल होय छे. तेना आगल सर्वेना बल हलका समजवा. जिनेश्वरो क्षमासागर होय छे तेथी तेओ वगर कारणे पोतानुं बल कोई काले फोरवता नथी. नवजात वीरप्रभुए चरणांगुष्ठवडे लाख योजन प्रमाणवाला सुमेरूपर्वतने कंपाव्यो हतो ते आश्चर्य मनायुं छे. ५१-५२ उत्सेधांगुल अने आत्मांगुलथी तनुमान--
उत्सेधांगुलथी ऋषभदेव प्रभुनु शरीरमान ५०० धनुषनो छे. त्यार पछी सुविधिनाथ लगण पचास पचास धनुष घटाडतां अजितनाथनो ४५०, संभवनाथनो ४००, अभिनंदननो ३५०, सुमतिनाथनो ३००, पद्मप्रभनो २५०, सुपार्श्वनाथनो २००, चन्द्रप्रभनो १५०, अने सुविधिनाथनो १०० धनुषनो शरीरमान होय. पछी अनन्तनाथ लगण दश दश धनुष हीन करतां शीतलनाथनो ९०,