Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
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उल्लास ] श्रीविंशतिविहरमानजिनचतुष्पदी. १५१ पूर्वाचार्यों के ग्रंथ अनुसारे, गुरुगम इह दरसाया । पंचसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी, निर्माण करी हरसायारे सोहमबृहत्तपगच्छ परंपर, रत्नसूरि सुखदाया । प्रवृद्ध क्षमा श्रुत संयम धारक, वृद्धक्षमा मुनिराया रे गा०३ सूरिदेवेन्द्र कल्याणसूरीश्वर, समयप्रवेदी कहाया । विजयप्रमोदसूरि जग चावो, तदन्तेवासी सुहाया रे गा०४ तत्पदपंकजसेवी क्रियोद्धारक, संयमी भाव जगाया। विजयराजेन्द्रसूरीशनी रचना, भविकजनके मनभायारे। विक्रम उगणी छेताला अब्दे, कार्तिक मास ओपाया । सौभाग्यपंचमी दिन एह भाव सुन, सकल संघ हुलसायारे मरुधरदेश सीयाणा नगरे, मुविधिनाथ जिनराया । सुरनरवंदित तदंघी पसाये, मंगल महोदय पायारे।गा०७॥
श्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छावतंसाऽऽबालब्रह्मचारि-विशुद्धतमचारित्राऽऽरामविहारि-कलिकालसर्वज्ञकल्प-जङ्गमयुगप्रधान-शासनसम्राट्-परमयोगिराज-जगत्पूज्य-गुरु देव-प्रभु-श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर-विरचितायां श्रीविंशतिविहरमानजिनचतुष्पद्यां द्वादशस्थानवणनो नाम षष्ठोल्लासः समाप्तः।
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