Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
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१५६ श्रीमहाधीर-गौतम-प्रवचन. [ शुभाऽशुभकर्म
जीव पंचेन्द्री तो हण्या, हाथे करी हलाल ।
रोग भगंदर पामियो, होवे एज हवाल ॥ ४२ ॥ १९ गणधर पूछे हे गुरो, दमडी द्रव्य न होय ।
इच्छा अधिकी थाय पण, जाय तमाशो जोय ॥४३॥ शा पापे संकोच छे, समझावो ए सार । अति हूं मानिश आपनो, आज खरो उपकार ॥४४॥ धर्मतणी अंतराय तो, पाडी परभव मांय ।
इच्छीयुं न मले एहथी, थाय दुःख मन माय ॥४५॥ २० को स्वामी ! वली नीपजे, कंठमालनो रोग ।
जीव साथे लागी रह्यो, कया करमनो जोग ॥४६॥ मच्छ मार्या बींध्या घणा, कर्म घणोज कठोर ।
ए परतापे रोग ए, हिंसा करतो ठोर ॥४७॥ २१ को स्वामी ! आ दर्द छ, हरसतणुं अंग मांय ।
कया करम कीधां हशे, जंपे जरा न ज्यांय ॥४८॥
धूणी बहू धखावी ने, जीव संतापे जेह । ' हर्ष नहीं आ हरसमां, अन्ते आपदा एह ॥४९॥ २२ गौतम पूछे हे प्रभो, प्रगटे पित्तज रोग।
शा परतापे संचरे, एवो अंगनो योग ॥५०॥ सेवे मैथुन साम?, अति आणी उल्लास ।
पाप तणुं ना माप छे, पित्त प्रगटे छे खास ॥५१॥ २३ बोले मीटुं पण बहु, लागे कडवो केण ।।
शाथी स्वामिन् ! ए कहो, विरमा लागे वेणं ॥५२॥
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