Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain

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Page 192
________________ फोमो दृश्य ] श्रीमहावीर - गौतम-प्रवचन. वनस्पति कुणी वली, हाथे चूंटी होय । ए परतापे दांत विण, काया कष्टे कोय ॥ १८५ ॥ ८६ भरनिंगल भारे ग्रहे, गडगुंमड जन कोय । १६९ कया करम कीधां हशे, ए स्थिति जन सोय । १८६ | पूर्वभवे प्राणी करे, आखुं फल लई हाथ । चीरी मीटुं बहु भरे, छेवट फल ए साथ || १८७ ॥ ८७ को स्वामी ! आ कालमां, दासीपणुं धरनार । कया करम कीधां थकी, गोलापन करनार | १८८ । मांखण बहु दिननो लइ, तावे आणी तोर । पामे दासीपण पछी, वलोवाय बहु जोर ।। १८९ ॥ ८८ रोग नाकसूर नीपजे, स्वामी ! शाथी आज । शा करमे ए सुख नहीं, अमने को महाराज ॥ १९०॥ पूर्वभवे प्राणी जनो, करे कसाई व्यापार । ए परतापे ऊपजे, नाकवर दुखदार ॥ १९१ ॥ ८९ कीडीनुं नगरो वली, व्याधि शाथी थाय । समझावो स्वामी ! मने, सुख रहित ना काय ॥ १९२॥ हस्ति घोडा गायने, भेंस तणो आ वार । पेसाब भेलो तो कर्यो, नाखे मीटुं खार ॥ १९३ ॥ अल्प कई अपराधने, सींचे एवा खार | दयाहीण ले दंड तो, ए फल अंसे सार ॥ १९४॥ ९० रोग बली उषासिनो, स्त्रीने शाथी थाय । एथी पीडा बहु बधे, कया करम फल दाय ॥ १९५ ॥

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