Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
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फलोनी दृश्य ] श्रीमहावीर - गौतम प्रचवन.
१७७
॥२७५।।
करी अंगार अनि तणा, चलम भरी चकडोल । गांजा तमाकुं जे पिये, भोगे कष्ट अडोल ॥ २७३॥ विष देई नर मारियां, कर कर क्रोध प्रचंड | परमाधामी तेहनो, शरीर करे शतखंड || २७४॥ डूंगर देव धाल्या घणा, बाल्या वनचर जेह | परमाधामी तेहनी, बाले अग्नि देह दृष्ट पिंड करी मोहियो, संग कियो परनार अग्नि तपावी पूतली, चांपे हृदय मझार ॥ २७६॥ जलं जलं महाराजजी, मत द्यो मोटो त्रास । छोडो फांसो कंठनो, जिम लेबुं थोडो सास ॥ २७७॥ राजदंड होवे घणा, जगमें होय फजेत । जेहने चंदों बारमो, परनारीसुं करे हेत ॥२७८॥ धन हाणी हाँसी घणी, सुखे न सोवे आय । जेहने चंदो बारमो, परनारी घर जाय दान दियंता वारता, करता राग ने द्वेष । परमाधामी तेहना, मुखमां मारे मेष ॥ २८० ॥ पंखी पाड्या पाशमां, तीतर मोर चकोर । जई नरकमां ऊपन्यो, सहेतो कष्ट अघोर ॥ २८९ ॥ कर्म अशुभ भारे करी, जीव अधोगति जाय । छेदन भेदन बहु सहे, कोइ सहाय न थाय ॥ २८२ ॥ सप्त व्यसन सेव्यां घणा कीधां मोटा पाप । ज़ाई नरकमां ऊपन्या, तेहने वींट्या सांप ॥ २८३॥ ||
॥२७९॥
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