Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain

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Page 196
________________ फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. १०५ चोरी करतो जन वली, पाडे गांठडी सार । कया कर्म कीयां थकी, ए मलशे अवतार ॥२२९॥ वनस्पती वीणी घणी, काढ्या रस बहु यार । ए परतापे तेहवो, चोर नाम आ ठार ॥ २३० ॥ १०६ को स्वामी! शा कर्मवी, जन फांसीए जाय । कया पाप कीधां हशे, एले आयुष थाय ॥२३॥ पूर्वभवे कीधी घणी, बहु बोकडा घात । . ए कर्मे सुख तो नहीं, विणसे फांसी जात ॥२३२॥ १०७ जन्म मरण जीव बेहुमां, देखे एवो दाव । कया कर्म कीधां हो, पूरो न मले लाव ॥२३३॥ वनस्पतिना पानडा, फल बीज छेद्यां छेक । हाथे करी खेंची लिये, न मले काइ विवेक ॥२३४॥ चूंटे बहु ते चोपथी, दया अरा नहीं दील । ' ए परतापे आ भवे, सुखनी राखे ढील ॥ २३५ ॥ १०८ मात पिता दुख पामता, संतति काजे आज । कया कर्म कीयां हो, मुझने कहोमहाराज ॥२३६॥ वनस्पतिनी वेलियो, छेदे भेदे छेक । राची प्रशंसा बहु करे, एवा दुःखनी टेक ॥२३७॥ १०९ श्रावकजन साधूतणो, लहे नहीं कांई लाभ । कया करम कीधां हशे, एवो दुखनो आम ॥२३८॥ पूर्वभवे प्राणी जनो, बोले मर्मी बोल । गुह्य वात खुल्ली करे, तेथी तेवो तोल ॥२३९ ।।

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