Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
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श्रीमहावीर - गौतम-प्रवचन [ शुभाशुभकर्म
बाग-बगीचा बहु कर्या, पूर्व भवे परमाण । फल बीज रूख ज छालने, त्रोडी फल ए मान । १९६ ॥ वृक्ष घणा उपाडीने, वावे फरिने जोय | रोग मोटको ए थकी, काया पामे कोय ॥ १९७ ॥ ९१ तप करतो जन बहु वली, बहु.न वखाणे जान । कया करम कीधां थकी, शोभे नहिं जस वान ॥ १९८ ॥ फल आदिकना आथणां, झबोलियां जल मांय । ताजे ताजां तो कर्या, स्वाद लागियुं ज्यांय ॥ १९९॥ नील फूल स जीवने, विराधिया नित वार | ते परतापे तप करे, लेखे न लागे यार ॥ २०० ॥ ९२ जन को खवरावे घणुं, पण अवगुण ले अन्य । कया करम कीधां थकी, केवाये नहिं धन्य ॥२०१॥ पूर्वभवे प्राणी करे, रांध्या रांधण भाई ।
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ए परतापे अन्यने, अवगुण आवे दाई || २०२ ॥ ९३ जीव गर्भमां ऊपजे, जन्मे ज्यारे यार ।
आडो आवे कापतां, कया कर्म ए धार ॥ २०३ ॥ कसाईना धंदातणुं, हांसल दान हजार । ले छे लोको कैक जन, ए फलनो दातार ॥ २०४ ॥ ९४ चाडी खाये कैक जन, लई वस्तु वचमांय ।
एशा करमे चाडीयो, एवो न मले क्यांय ॥ २०५ ॥ नील फूल काची लई, दीघां दुःख अपार । अखाडा आकर विषे, दाट्यां ए फल सार ॥ २०६ ॥
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