Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain

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Page 185
________________ १६२ श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. [शुभाऽशुभकर्म४८ को स्वामी ! जन कोई तो, पामे सुस्वर भेद । शुं शुभ कर्मो तो कर्या, शुं नहीं करियो खेद ॥१०८॥ परजीव प्रति मीठं वदे, करे रक्षा दई दील । पापपंथ छोडी दिये, शुभ थातां शी ढील ॥१०९॥ ४९ शाथी बलहीण थाय छे, जीव पंचेन्द्री जाण । रती नहीं शक्ति मिले, समझावो सुखवाण ॥११०॥ आहार कर्या मच्छना वलि, आणी तीव्रज भाव । पूर्व भवे परिणाम ए, बलहीणनो उठाव ॥ १११ ॥ ५० पुरुष जातमांथी वली, पामे स्त्रीनी जात । शा पाप कीधां हशे, तुरत कहो ते वात ॥ ११२ ॥ पापतणुं स्थानक वली, सत्तरमुं जे सोय । मायामोसो सेवियो, एथी स्त्रीजन होय ॥११३ ॥ ५१ मनवंछित फल ना मले, आशा न पडे पार । कया करम कीधां हशे, को स्वामी ! आ वार ॥११४॥ पूर्वभवे प्राणी जनो, जीव पंचेन्द्री जाण । पडाविया विजोग कई, एथी फल परमाण ॥११५॥ ५२ अति निद्रा तो आवती, कईक जीवोने आज । पूर्वभवे शा कर्म तो, कीधां छे महाराज! ॥११६॥ दारू पीधा दश गणा, कर्याज मदिरा पान । भाव तीव्र आण्या घणां, बहु निद्रा परमाण ।११७/ ५३ बलहीन जन तो थाय छ, कया करमथी आज । अतिको अपराध श्यो, समझावो महाराज ॥११८॥

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