Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain

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Page 187
________________ १६४ महावीर-गौतम-प्रवचन. [शुभाऽशुभकर्मविकलेन्द्रि जीव तो वध्या, पूर्व भवे जन मान । ए परतापे पुरुषने, व्हालो नहीं सुजाण ॥१३०॥ ६० तरुण पणे तरुणी तणो, केम थाय वियोग । बांढो बहु वगोवाय छे,शा करमे ए भोग ॥१३॥ स्पर्शेन्द्रियना वश थकी, कंदर्प सेव्यां सार । तेथी तरुणी जाय छे, करमज फल दातार ॥१३२॥ ६१ को स्वामी ! जन कोई तो, लूलो पांगलो थाय। शा करमे ए गतिमले, पाय बिना दुख दाय ॥१३३॥ वनस्पति बहु वाढी छे, मोली तोडी जाण । चांपी बहु चूंपे करी, एथी ए परमाण ॥१३४॥ ६२ स्त्रीने पुरुष बिजोग छ, तरुणपणामां केम । ए दुख शाथी ऊपजे, अंतरथी को एम ॥१३५॥ स्त्री पुरुष संजोगमां, ओसड भेसड यार । मेल्या बहु ममता करी, कर्म तणो ना पार ॥१३६॥ ६३ गौतम पूछे गुणनिधे ! पुरुष प्रसेवा गंध । अतिगमतो ना अवरने, कया करमनो बंध ॥१३७॥ पीधां पायां बहु करी, मनुष्य मदिरा पान । एथी छे अलखामणो, कुगंधि देह मिलान ॥१३८॥ ६४ बोले सांचुं बहु करी, करे प्रतीत न कोय। झूठो जन लागे सदा, शा करमे ए होय ॥१३९॥ पूर्व भवे पूरी वली, असत्य साक्षी अपार । एथी सांचो नव गणे, सारो नहीं तल भार ॥१४०॥

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