Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
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१६६ महावीर-गौतम-प्रवचन. [ शुभाऽशुभकर्म
तीव्र भावथी सेवियां, मैथुन झाझा मान । सेवरावियां अन्यने, मानी शुभ नहीं वान ॥१५२॥ विष फांसी दीधां वली, जीवने वारंवार ।
एथी प्राणी नवलहे, सुख पण स्वमे सार ॥१५३॥ ७० चौदे थानक मनुष्यना, जीव संमूर्छिम थाय ।
कया करम कीधां हशे, जंपे नहींज जराय ॥१५४॥ भरी तेल कोठी वली, भर्या कुडला मांय ।
जीव संमृर्छिम ए थकी, काया विषेज थाय ॥१५५॥ ७१ रोग वली तो पित्तनो, मनुष्य ने जे थाय ।
को स्वामी! शा करमथी, ए दुखडुं ना जाय ॥१५६॥ पूर्व भवे प्राणी जने, कीधां सलाट कर्म ।
पित्त प्रगटीयु ए थकी, धर्या न जेणे धर्म ॥१५७।। ७२ मरजादा ऊपर वली, लागे जनने भूख ।
कया करम संजोगथी, ए सारूं नहीं सुक्ख ॥१५८॥ पूर्व भवे प्राणी जनो, खेडे खेतर यार ।
करणीना फल एह तो, पामे छे निरधार ॥१५९॥ ७३ को स्वामी! को मनुष्यनी, आंगली छेदन थाय ।
हस्त अने वलि पायनी,शा करमेथी जाय॥१६०॥ वृक्ष रूख छेदिया घणा, अति कुमला मूल |
ए परतापे आखरे, अंगे लागी मूल ॥१६१॥ ७४ मल्युं मनुष्य अवतार पण, वदे तोतला वेण । ' धूणे मस्तकथी वली, शा करमे ए केण ॥१६२॥
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