Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain

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Page 177
________________ श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. [भाऽशुभकर्मदया दिल राखी नहीं, दाखी दुष्टता दील । ढूंठो भव तेथी ठरे, बहु जे होय बखील ॥२०॥ ८ गौतम पूछे हे प्रभो !, पंगु शाथी थाय । कया करम कीधां थकी, न मले तेने पाय ॥२१॥ घात करी पशु जीवनी, मन मलकातो जाय । एकेन्द्री हणतो घणो, एथी पंगू थाय ॥२२॥ ९ गौतम गुरुने पूछता, गूगो बोबडो होय । भोग लागिया शा थकी, जीव घणेरा जोय ॥ २३ ॥ संजमधारी चीडवे, बोले अवरणवाद । को गति एहनी शी हवी, अंते एवा स्वाद ॥ २४ ॥ १० गौतम पूछे प्रश्न आ, बधिर सूजलो थाय । शा पापे परगट थशे, एवा दुख दिल मांय ॥ २५ ॥ वेदकपणुं बोरे वली, करम करेज अपार । जीव हिंसा थाये घणी, अंते एमज धार ॥२६॥ ११ गौतम पूछे भावथी, हे मुझ प्राणाधार !। बधिर पांगलो नीपजे, कया करमनो सार ॥२७॥ वनस्पति कापी घणी, हाथे छेदे छेक । पूर्व भवे परिणाम ए, रहे न कोनी टेक ॥ २८ ॥ १२ गौतम पूछे हे प्रभो!, गांडो गूगो होय । कया करम कीधां हशे, संकट मलियुं सोय ॥ २९॥ तीर्थ चतुरनो मूर्खथी, बोले अवरणवाद । ए परतापे भोगवे, अंगे एवी व्याध ॥३०॥

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