Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain

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Page 180
________________ फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर - गौतम - प्रवचन. आहार पंचेन्द्री तणा, छोडावे जन कोय । एनुं बोल्युं ना गमे, अन्य जनोने जोय ॥ ५३ ॥ २४ कहो स्वामिन्! शरीरमां, बल न अतिशय होय । कया करम कीधां हशे, संकट एवं जोय ॥ ५४ ॥ वनस्पती कापी घणी, बनारी शोभा वेश । जीव कर्या ज करे घणा, एथी दु:ख अशेष || ५५ ॥ २५ गौतम पूछे हे गुरो !, रोग रहित आ देह | रहे नहीं को दी वली, शा करमे संदेह ॥ ५६ ॥ असत्य झाझुं आचरे, लिये लोकनी लांच | १५७ एथी कदी न भांगशे, अंग मांहींथी आंच ॥ ५७ ॥ २६ को स्वामी ! संजोगिनो, वलि क्यम थाय वियोग । मलेलं गुमावे मानवी, शा करमे ए भोग ॥५८॥ घणा कर्या माया कपट, धूर्तपणुं धर्यु अंग । मित्र कपट बहु आचर्यो, एथी थाये अभंग ॥ ५९ ॥ २७ गौतम पूछे प्रभुप्रति, एक प्रश्न आ वार । कुरूप शा करमे थशे, जीव घणां ज्यार ॥ ६० ॥ कुसुम फलादिक त्रोडियां, प्रतिदिन राखी प्रीत | रूपे झाझुं राचियो, मले कुरूपनी रीत ॥ ६१ ॥ २८ डरतो थरथरतो घणो, अल्प हुओ अपराध । कया करमथी को वली, मटे न मननो व्याध ॥ ६२ ॥ पूर्व भवे कर्यां वली, कोटवालना काम । araण ए परतापथी, कर्या कर्म परिणाम ॥ ६३ ॥

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