Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain

View full book text
Previous | Next

Page 178
________________ फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. १५५ १३ गौतम पूछे प्रेमथी, गलत कोढीयो कोय । शाथी ए संकट आहे, सुक्ख न स्वग्ने जोय ॥ ३१ ॥ सोनाने रूपातणी, भट्टी भरावे जेह ।। ए परतापे ऊपजे, गलत कोढियो एह ॥ ३२ ॥ १४ को स्वामी ! सुकृती घणो, पण जश नांशे जोय । करवा जावे पाधलं, पण अपकीर्ति होय ॥३३॥ सचित्त घणा ओसडतणो, साधे बहु संजोग । एथी अपजश ऊपजे, जेवा करमना जोग ॥ ३४ ॥ १५ हे महाप्रभो ! जन मंजरो, शाथी कोई थाय । कया करम कीधां हशे, समझ्यां शाता थाय ॥३५॥ पापतणो उपदेश दे, मद मनमां नवि माय । माटेज थयो मंजरो, कर्मनाज फल थाय ॥ ३६ ।। १६ बहुजन बीकण तो हुवा, शा करमे ते थाय । अरिहंत! उत्तर आपजो, शंका मननी जाय ॥ ३७ ॥ पापतणो तो पार ना, काया मद ना माय । बीकण एहथी तो बने, ठाले हाथे जाय ॥ ३८ ॥ १७ सालं नहीं शरीर तो, स्वामी! शाथी थाय । कुरूप हुओ काया विषे, मर्म कहो मुनिराय ॥३९॥ रुको आव्यो हाथमां, करे आकरा दंड । दया न होवे दिलविषे, जीव करे आक्रंद ॥४०॥ १८ गौतम पूछे गुरुप्रति, रोग भगंदर थाय । कया पाप कीधां हशे, सुख न कदी सुहाय ॥४१॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202