Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
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श्रीमहावीर - गौतम - प्रवचन । ( शुभाशुभकर्मफलोनो दृश्य )
कथा करम विपाकनी, संभलावुं आवार । श्रवण करो सज्जन सदा, आनंद अपरंपार ॥ १ ॥ कया करमथी कई गति, जीवतणी जे थाय । ए वर्णन आ स्थल लखुं, मद मानवीनो जाय ॥ २ ॥ जीव अनादिकालनो, भटके भुंडे वेश । पार न आव्यो तेहनो, बहु वर्णन छे वेश ॥ ३ ॥ १ गौतम पूछे प्रेमथी, श्रीमहावीर समीप । उत्तर भगवंत ! आपजो, देखूं आपने दीप ॥ ४ ॥ कया करम कीधां थकी, काणो जन को होय । ए उत्तर देवो घटे, मद राखे नहीं कोय श्रीमहावीर तो बोलीया, हे गौतम - गणधार ! | फल बीज झाझां बींधिया, पूर्व भवे प्रियकार ॥ ६ ॥ ए परतापे थाय छे, काणो जन तो होय । मद मानवीनो ना रहे, करम करे ते होय ॥ ७ ॥ २ गौतम पूछे प्रेमथी, हेमहावीर ! सुखदाय । कया करम कीधां थकी, बन्ने आंखो जाय ॥ ८ ॥
॥५॥