Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
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उल्लास] श्रीविंशतिविहरमानजिनचतुष्पदी. १४९ बीजा अढारमा विहरमान के चरण कुंजर सोहता, प्रभु नवम पंचम सोलमा के भानु जन मन मोहता ॥१०॥ प्रभु तेरमा ने पंदरमा के पद्म लंछन राजतो, बाहु प्रभु के हरण ने सुबाहु के कपि छाजतो । प्रभु सातमा ने आठमा इग्यारमा के अनुक्रमे, सिंह छार शंखहवे अजितवीर्य के स्वस्तिक जानो भवि तमे।
६-विहरमानजिनोनी विजय, ( हरिगीत-छंदमां) प्रथम पंचम नवम जिनवर विहरमानजी तेरमा, ए चार जिनजी पुष्कलावती पुष्कलावती सतरमा । है वप्रविजये पांच जिनवर जुदा जुदा जानिये, दूजा ने छट्ठा चौद दशम अढारमा मन आनिये ॥१२॥ जीजा ने सत्तम ग्यारमा बलि पंदरमा उगणीसमा, ए पांच प्रभुजी वत्सविजये नलिनावति जिन वीसमा। सुबाहु चोथा आठमा ने बारमा वलि सोलमा, ए चार पण नलिनावति शंसय नहीं इण बोलमां ।५३४॥
७-विरहमान जिनोनी नगरीओ, ( इकतीसा-छंद ) विंशति विहरमान जन्मतणी नगरीना, न्यारा न्यारा नाम इम क्रमसे पेचानिये । विजया सुसीमा पुंडरीकिनी नगरी, . वीतशोका चारो माहे पांच पांच जिन जानिये ।।
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