Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
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सारांश ४ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ४७
आ कोठाओमां आचार्योना मतान्तरथी सुविधिनाथने त्रण लाख अंशी हजार, शीतलनाथने ३ लाख ८० हजार, श्रेयांसनाथने १ लाख २० हजार, वासुपूज्यने १ लाख ६ हजार, विमलनाथने १ लाख ३ हजार अने अनन्तनाथने १ लाख ८०० साध्विओनी संख्या जाणवी. तेमज धर्मनाथने श्रावकोनी संख्या २४००००, तथा अजितनाथने २२००० अने कुंथुनाथने २२०० केवलज्ञानियोनी संख्या जाणवी. ऋषभदेवने १२६५० अअितनाथने १२५५० अने नमिनाथने १२६० मनःपर्यवज्ञानी, तेमज ऋषभदेवने १२२५०, सुमतिनाथने १०६५० अने वासुपूज्यने ४२०० वादीमुनिवरोनी संख्या समजवी.
१२९ आदेशानी संख्या
__ अड्ग, उपाङ्ग आदि सूत्रोमां जे बाबतो कहेली नथी अने ते बहुश्रुतोए परंपरागमथी भाषेल छे. ते 'आदेशा' कहेवाय छे. जेम के कुरडकुरड (कुरुटोत्कुरुट ) मुनि नरके गया. वीरप्रभुए चरणांगुष्ठवडे सुमेरुने कंपाव्यो, अनंतकाय केलमांथी मरुदेवी थइने सिद्ध थया अने वलयाकार सिवाय सर्व आकारना मत्स्य (मच्छ ) होय. ए बावतो सूत्रोक्त नथी, परन्तु बहुश्रुत कथित छे. एवा आदेशा वीरप्रभुने ५००, अने शेष जिनवरोना शासनमां अनेक प्रकारना जाणवा.