Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
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सारांश ५ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ६७ ६-१२ विजय, नगरी, शरीरवर्ण, आयु, शरीरमानादि
पुष्कलावतीविजय अने पुंडरीकिनी नगरीमा १-५९-१३-१७, वप्रविजय अने विजया नगरीमा २-६-१० १४-१८, वत्सविजय अने सुसीमा नगरीमा ३-७-११ -१५-१९, तथा नलिनावतीविजय अने वीतशोका नगरीमा ४-८-१२-१६-२०, एवं पंच पांच विहरमाण जिन समजवा. वीश विहरमाण जिनेश्वरोने शरीरनो वर्ण स्वर्ण सरखो, आयु ८४ लाख पूर्वनो, शरीरमान ५०० धनुष्यनो, केवलज्ञानी संख्या १० लाख, मतान्तरे २ क्रोड, सामान्य मुनिवरोनो परिवार १०० क्रोड, मतान्तरे २००० क्रोडनो समान समजवू.
१ अंचलगच्छीय हर्षनिधानसूरि संग्रहित 'रत्नसंचय ग्रन्थमां कहेलुं छे के-महाविदेहक्षेत्रमा रहेला साधुओने पण बत्रीश कवलनो आहार होय छे. तेमनो बत्रीश मुंडानो एक कवल थाय छे तेथी ३२ कवलनुं प्रमाण बत्रीशने बत्रीशे गुणवाथी एक हजार चोवीश मुंडा थाय छे, एटलो एक साधुने एक वखतनो आहार होय छे. त्यां साधुना मुखy प्रमाण उत्सेधांगुलथी ५० हाथर्नु छे. तेना पात्रना तलीयानुं प्रमाण १७ धनुष लांबु होय छे अने तेमनी एक मुखवत्रिकामां भरतक्षेत्रना साधुओनी एक लाख, ६० हजार मुखवत्रिकाओ थाय छे. ( अहीं करता ४०० गणी लांबी अने ४०० गणी पहोली होवाथी आ माप घटी शके छे )