Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
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उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १३५ नव शत संघाते शांति नेमि पांचसो छत्तीस जानिये । इग सहस साथे शेष जिनपति मुक्ति पहोता मानिये ।। सहस अडतीस चारसो अरु पांच एंशी ऊपरे । सर्व जिनना सकल मुनिवर सिद्धि ठाणे संचरे ॥४६०॥ १५८-१६० मोक्षगमनवेला, मोक्षारक अने आरक शेषचोवीस जिननो मोक्ष के जे वेला थयो,
- मारा लाल के जे वेला थयो। तेहनो कहुं विरतंत के सूत्रमा जे लह्यो,
मारा लाल के सूत्रमा जे लह्यो । दिवसनो पेलो भाग के पूरव अहन में,
मारा लाल के पूरव अह न में ॥ अवर अहन में केवाय के पाछला पहर में,
मारा लाल के पाछला पहर में ॥ चो० ॥१॥ इमहिज रात्रिना भाग के बेइ मानिये,
मारा लाल के बेइ मानिये । संभव ने पउमाभ के सुविहि जानिये,
मारा लाल के सुविहि जानिये ॥ वासुपूज्य ए चार के अपराह्ने शिव गया,
मारा लाल के अपराह्ने शिव गया। शेष जिनेश्वर आठ के पूर्वाह्ने सिध थया, ...... मारा लाल के पूर्वाह्ने सिधथया ॥ चो० ॥२॥