Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain

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Page 165
________________ १४२ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानच तुष्पदी. [ पंचम सा० सुविधिजिनना तीर्थ के, असंयत पूजियारे लो । सा० शीतलजिनवर वार के, हरिवंशी थयारे लो ||३०||२|| सा० स्त्रीपणे मल्लिजिणंद के, तीर्थंकर थयोरे लो | सा० धातकीखंडे कृष्ण के, शंख पूरण कर्योरे लो ॥ सा० नेमीवारे शंख मेल के, पांचमो जाणियेरे लो । सा० उपसर्ग गर्भापहार के, चरमनो मानियेरे लो | इ० | ३ | सा० परखदा पुरुष अभाव के, शशि रवि आवियारे लो । सा० मूलविमाने आय के, वीरने वांदियारे लो || सा० ए पांचो वीर वार के, इम दश मेलियेरे लो । सा० सुणिने आतम पाप के, सघला ठेलियेरे लो ||३०||४|| सा० उत्सर्पिण्यवसर्पिणी काल के, बीते ए हुवेरे लो । सा० काल अनंतो जाय के, लोक में ए जुवेरे लो ॥ सा० अच्छेरा कहे लोक के, अरथ ए जाणज्योरे लो । सा० सूरिराजेन्द्र कहे सत्य के, मत मति ताणज्योरे लो १७३ जिनशासनमां चक्रवर्ती राजा चक्री बारे जिनवार में, ते कहुं क्रमसे जाण । ऋषभसमे भरतेश्वरु, अजित सगर वखाण ॥ ४९७ ॥ धर्म - शांतिना अंतरे, मघवा सनतकुमार | शांति कुंथुं अर तीन ए, जिनचक्री सुविचार ॥ ४९८ ॥ अर - मलि अंतर सुभूम, मुनिसुव्रत जिन वार । महापद्मचक्री थयो, हरिषेण नमि सुधार ॥। ४९९ ।।

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