Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
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श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी.
बलभद्र संयम लही, पाम्या पंचम स्वर्ग । शेष बलदेव कर्मक्षये, पाम्या सुख अपवर्ग || ५२३ ॥
[ पंचम
जिन चक्री वासु बलदेव, प्रतिवासुदेव थाय । पुरुष शलाका ए सभी, तिरसठ श्रेष्ठ गणाय ।। ५२४ ॥
उगणसाठ जीव जनक, वावन काया साठ | जननी इकसठ मानिये, देखी ग्रन्थ सुपाठ ॥ ५२५ ।। द्वार त्रीशथी शोभतुं, पूर्ण पंचमोल्लास । गृहकालसुं बलदेव लग, जिनवर स्थान प्रकाश ॥ ५२६ ॥
श्री सौधर्म बृहत्तपोगच्छावतंसाऽऽबालब्रह्मचारि -- विशुद्धतमचारित्राऽऽरामविहारि-कलिकालसर्वज्ञकल्प-जङ्गमयुगप्रधान-शासनसम्राद्-परमयोगिराज - जगत्पूज्य-गुरु देव- प्रभु - श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वर-विरचितायां पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पद्यां त्रिंशत्स्थानवर्णनो नाम पञ्चमोल्लासः ।
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