Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
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१३६ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [पंचमऋषम जाव श्रेयांस के ए शेष जानिये,
मारा लाल के ए शेष जानिये । । धरम अर नमि वीर के अपर रात्रिये,
मारा लाल के अपर रात्रिये ॥ शेष विमल जाव पास के आठ ए जिन सही,
मारा लाल के आठ ए जिन सही । पूरवरात्रे मोक्ष के पाम्या दुख नहीं,
मारा लाल के पाम्या दुख नहीं। चो० ॥३॥ तीजे आरे अंत के ऋषभ शिववधु वर्या, ____ मारा लाल के ऋषभ शिववधु वर्या । शेष तेवीस जिनेन्द्र के चोथे दुख हर्या,
मारा लाल के चोथे दुख हो । प्रणमो सरिराजेन्द्र के सहु संकट हरे,
मारा लाल के सहु संकट हरे । एकसो उनसठ ठाण के मनमां ए घरे,
मारा लाल के मनमां ए धरे ॥ चो० ॥४॥
नदी जमुना के तीर उडे दो पंखिया, ए राहमोक्ष आरानो शेष, जनम आरा जिस्यो। पिण जे जेनो आयुष्य, हीन करलो तिस्यो ॥१॥ जिम तीजो आरो शेष, ऋषभ जन्म्या यदा। ! चोरासी पूरव लाख, नव्यासी पख तदा ॥२॥