Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
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उल्लास ] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १३१ १४६-१४७ जिनेश्वरोनो गृहस्थ अने केवली कालकुमार नृपति चक्रीत[, जे जिननो जे काल । सरबालो कर जानिये, कहिये गृहस्थाकाल ॥ ४३१ ॥ व्रतकाल जे जिनतणो, छअस्थकाले हीन ।
शेष रहे ते केवली-काल लहो परवीन ॥४३२॥ १४८ जिनेश्वरोनो दीक्षापर्यायएक लाख पूरव तणो, ऋषभर्नु दीक्षा काल। अजितने पण इक लाख में, पूर्वाङ्ग इक दे टाल ॥ ४३३॥ संभवसे सुविधि लगण, लख इक पूरव माहिं । चउ चउ पूर्वाङ्ग हीन कर, शेष काल उच्छाहिं ॥ ४३४ ॥ पचविस सहस पूरवनो, शीतल दीक्षा पर्याय । इकवीस लाख वर्ष, श्रेयांसजिन- थाय ॥ ४३५ ॥ चोपन लाख वरसां तणो, वासुपूज्य जिनराज । . पनर लाखनुं विमलजिन, जानो सयल समाज॥ ४३६ ॥ सादिसात लख अनंतनो. अढ़ीलाख धर्मेश । सहस पचवीस वर्षनो, लीजे शांतिजिनेश ॥ ४३७ ॥ पोने चोबीस सहस, कुंथुजिन वर्ष गणाय । सहस वर्ष इकवीसनो, अरनाथ महाराय ॥ ४३८ ॥ १ चउ अड बार सोल वीस, चोविस अडविस चीन । क्रमे पूर्व लख एकमें, पूर्वाङ्ग करहु हीन ॥ १ ॥
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