Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
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सारांश ५ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ५७ १५९-१६० मोक्षारक अने मोक्षारकशेषकाल
आदिनाथ त्रीजा आराना अन्तमा अने शेष जिनपति चोथा आरामां मोक्ष गया छे. जिनवरोनो निज निज आयुष्य जन्मारकशेषकालमांथी ओछो करतांजे काल वाकी रहे ते मोक्षारकशेषकाल जाणवो. जेमके ऋषमदेवजी त्रीजा आराना ८४ लाख पूर्व ८९ पक्ष शेष रहेतां जन्म्या छे, तो तेमांथी निजायु ८४ लाख पूर्वनो बाद करतां त्रीजा आराना ८९ पक्ष शेष रह्या ते मोक्षारकशेषकाल समजबु. एज प्रमाणे दरेक जिनेश्वरमां भावना करवी. १६१-१६२ युगान्तकृत् अने पर्यायान्तकृभूमि
आदिनाथ मोक्षगमनानन्तर असंख्याता पाट, अजितनाथथी नमिजिन सुधी संख्याता पाट, नेमिनाथ मोक्ष गयां पछी आठ पाट, पार्श्वनाथ मोक्ष गयां पछी चार पाट, अने वीरप्रभु मोक्ष गयां पछी त्रण पाट लगण मोक्षमार्ग चालतो रह्यो.
ऋषभजिनने केवलज्ञान उपन्यां वाद बे घडी पछी, नेमिनाथने केवल थयां पछी बे वर्षे, पार्श्वनाथने केवल थयां पछी त्रण वर्षे, वीरप्रभुने केवल उपन्यां पछी चार वर्षे, अने शेष जिनेश्वरोने केवलज्ञान थयां पछी एकादि दिवसना अन्तरे मोक्षगमन चालु थयो. १६३-१६४ मोक्षमार्ग अने मोक्षविनय
साधुधर्म अने श्रावकधर्म ए बे, अथवा सम्यग्ज्ञान,