Book Title: Padmanandi Panchvinshatika
Author(s): Padmanandi, Gajadharlal Jain
Publisher: Jain Bharati Bhavan

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ॥३|| अधिकार है इसमें चौबीसों तीर्थंकरोंकी उत्तमरीतिसे स्तुति की है। १७ वां प्रभाताष्टक नामका अधिकार है इसमें जितेंद्र के सुप्रभातका भली भांति वर्णन कियागया है यह सोत्र प्रात:काल में बोलने के लिये बहुत ही अपूर्व है । १८ वा शांतिनाथस्तोत्र है इसमें शांतिनाथ भगवानकी उत्तमरीतिसे स्तुति की गई है। १९ वां पूजाष्टक है इसमें जल चंदन भादिक जुद २ अष्टकों का वर्णन कियागया है । २० वां करुणाष्टक है यह स्तोत्र इतना मधुर है कि इसके पढ़नेसे कंठ करुणासे गद्गदहोजाता है । २१ वां कियाकांड चूलिका नामका अधिकार हैं इसमें बखूबी रीति जिनेन्द्र भगवानके सामने पापाके प्रायश्चित्तका वर्णन कियागया है। २२ वां एकलभावना नामक अधिकार है. इसमें एकत्वभावनाका विस्तार पूर्वक कथन है २३ वां परमार्थविंशति नामक अधिकार है इसमें भलीभांति परमार्थका वर्णन कियागया है। २४ व शरीराष्टक नामक आधकार है इसमें इस शरीर के गुणदापोंका वर्णन है। २५ वां स्नानाष्टक है इस अधिकारमें मानसे शुद्धिमाननेवालोंकी निंदाका वर्णन कियागया है। इन पञ्चीस साधकारों के अतिरिक्त अंतमें ब्रह्मचर्याष्टक है इन आचार्य महाराज की ब्रह्मचर्य में सब धाँसे अधिक भक्ति थी इसलिये ब्रह्मचर्य अधिकार में इस पंथकी समाप्ति की है एसा मालूम होता है ।। इति । हमारी समझसे यह ग्रंथ प्रत्येक भंडार तथा घरमें रहना चाहिये और यह ग्रंथ औपदेशिक परीक्षामें भी भर्ती होजाना चाहिये क्योंकि ना विद्याथा आपदाक्षक परीक्षा दग व अवश्य ही इसपथको याद करेंगे और इसके याद करनेखे ये अच्छीतरह जनधमंके जानकार हो जायेगे तथा उत्तमवक्ता भी होजावेंगे इसमें किसी प्रकारका संदह नहीं । इसग्रंथकी कविता बहुत ही उत्तम और गंभीर है। . आचार्यवर पद्मनंदी । सज्जनगण ! यह जो ग्रंथ आपके सामने विराजमान है इस प्रथके कर्ता महात्मा आचार्य पदके धारी श्रीपद्मनंदी आचार्य है । जैनियोंका इतिहास सबसे पछि पछड़ा हुवा है, सामग्री कुछ भी नजर नहीं आती, एक २ नामके कई आचार्य भी होगये, इसछिये पनदिनी सरीखे विद्वानाम थे कीन पानदी भाचार्य थे इसवातका हम जराभी निर्णय नहीं करसकते, क्या करें। पूना लायनरीकी रिपोर्टमे यह पतालगा है कि पद्मनदीनामके कई आचार्य होगये हैं उनमें एक पद्मनंदी जम्बूहीप प्रज्ञप्ति के कती हैं जो कि वीरनंदीके शिष्य वलनदी, वळनंदीके शिष्य पद्मनंदी हैं। ये आचार्य विजयनगर के निकट वारानगरके शक्ति भूपाल के समय में हुवे हैं। दूसरे पद्मनंदान पविशतिका, चरणमारपाकत, धर्मरसायनपाकृत य तीन ग्रंथ बनाये हैं। इनके समयादिका कुछ भी पता नहीं लगता । तीसरे कर्णखटग्राम में हुवे हैं जिन्होंने सुगंधदशमीउदाापनादि वनाये हैं। चौथे पद्मनदी कुडलपुरनिवामी दुवे हैं जिन्होंने चूलिकासिद्धांतकी वृत्तिनामक व्याख्या १२.०० इलाकों में बनाई है। पांचवें विक्रम सं० १३९५ में हुवे हैं छ? पद्मनंदी भट्टारक नामसे प्रसिद्ध हुवेई जिनकी बनाई हुई For Private And Personal

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