Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 11
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ १३८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका परंतु बोसवीं शताब्दी के आरंभ में ही कुछ नई खोज हुई जिसके कारण उपर्युक्त सिद्धांत की जड़ें हिल गई । सन् १८०७ ई० में एक जरमन विद्वान् पुरातत्ववेत्ता ने सीरिया देश में बोगजकुई स्थान पर एक प्राचीन लेख खोज निकाला जिसके कारण "भारतवर्ष की अद्भुत विरक्तता" ( India's splendid isolation ) वाला सिद्धांत बिलकुल बेबुनियाद साबित हो गया । इस लेख से यह पता चला कि ई० पू० चौदहवीं शताब्दी में केपेडोशिया' में दो युयुत्सु जातियाँ अर्थात् हिट्टाइट और मितन्नो संधि करते समय इंद्र, वरुण एवं मरुत् इत्यादि वैदिक देवताओं से शुभाकांक्षा करती और उनकी साक्षी देती €1 इस संधि के फल स्वरूप उन दोनों जातियों के राजघरानों में एक विवाह होता है और इसमें वर वधू को आशीर्वाद देने की देवताओं से याचना की जाती है । इस प्रकार यह साबित हो गया कि भारतीय सभ्यता प्राचीन काल में केवल इसी देश के चारों कोनों में परिमित नहीं थी वरन् उसके बाहर भी दूर दूर के देशों में फैली हुई थी । गत बीस पचीस बरसे के अन्वेषण से यह सिद्ध हुआ है कि भारतीय संस्कृति समस्त पश्चिमी और मध्य एशिया के देशों में तथा पूर्व में जावा, सुमात्रा, श्याम, कंबोडिया, बाली, इत्यादि स्थानों में फैली हुई थी । हमारी यह संस्कृति कत्र कब और कहाँ कहाँ फैली और उसका क्या प्रभाव पड़ा इसका वर्णन करने से पहले भारत के प्राचीन जीवनोद्देश पर एक स्थूल दृष्टि डालना उचित प्रतीत होता है । (१) सीरिया देश के एक भाग का प्राचीन नाम । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 124