Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 11 Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza Publisher: Nagri Pracharini Sabha View full book textPage 4
________________ ( ६ ) विशाल भारत के इतिहास पर एक स्थूल दृष्टि [ लेखक-श्री परमात्माशरण एम० ए०, काशी] - कुछ समय पहले तक पाश्चात्य विद्वानों का ऐसा विश्वास था कि प्राचीन काल में भारतवर्ष का किसी अन्य देश से संबंध नहीं था। उनका मत था कि "विशाल भारत" ' भारतीय संस्कृति और सभ्यता का उत्कर्ष ऐतिहासिक खोज का एक उसी भूमि के अंदर परिमित था और नया विषय भारतीय सभ्यता तथा साम्राज्य कभी अन्य देशों में नहीं फैले। इस विश्वास का एक कारण तो यह था कि हमारे इस युग के धर्माधिकारियों ने समुद्र . पार जाने को धर्म-विरुद्ध ठहरा दिया था। ऐसी अवस्था में जब पाश्चात्य विद्वानों ने हमारे साहित्य का अध्ययन पहले पहल किया तब उन्होंने हिंदुओं के जात-पांत और खान-पान इत्यादि के झगड़ों को देखकर यह परिणाम निकाला कि यह देश सदैव से ऐसे ही पार्थक्य की नीति का पालन करता है, अतएव इसका किसी दूसरे देश से संबंध नहीं हो सकता था। इसी आधार पर, इन विद्वानों ने यह परिणाम भी निकाला कि भारतवर्ष में विज्ञान आदि पदार्थ विद्याओं की कोई उन्नति नहीं हुई। उनको यही जान पड़ा कि यहाँ के लोग सब से अलग कोने में बैठकर पारलौकिक विज्ञान और तत्त्वों की मानसिक इमारतें ही बनाते रहे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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