Book Title: Na Janma Na Mrutyu
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 8
________________ अंदर के पृष्ठों में साक्षित्व का सूर्योदय भेद-विज्ञान की पहल आत्मज्ञान का अहोभाव अंतर्दृष्टि की कसौटी भोग भी, योग भी 23 त्याग हो देह-भाव का 49 55 63 स्थितप्रज्ञ की स्थिति संसार में खिले समाधि के फूल निर्द्वन्द्व होने की कला ओ रे मन, अब तो विश्राम कर परिस्थितियों के प्रति निरपेक्षता 70 78 85 विक्षेपों पर विजय 92 97 101 मालिक बनें मन के समझ उन्नत दशा की विषय-विरसता ही मोक्ष सत्य स्वयं में समाहित मुक्त चेतस् की अहोदशा 108 111 ... 118 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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