Book Title: Munisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Rushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust

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Page 26
________________ कुविन्द। उसकी पत्नी वनमाला बड़ी सुन्दर थी। उसकी आँखे हिरनी के समान थीं। वह जवान थी और उसे अपने रूप का बड़ा घमंड था। वीरकुविन्द सीधा सादा और स्वभाव से बड़ा सरल था। यद्यपि वह अपनी पत्नी को बहुत चाहता था; फिर भी वनमाला अपने पति से सन्तुष्ट नहीं थी। उसकी चंचल आँखे कोई दूसरा मार्ग ढूँढ रही थी। यद्यपि पत्नी के लिए पति ही परमेश्वरतुल्य होता है; फिर भी यदि उसे अपने माता-पिता के घर शील और सदाचार की शिक्षा न मिली हो, तो वह ससुराल में भी भटक सकती है। बेलगाम घोडा और ब्रेकरहित वाहन पर सवारी करने वाला कभी भी खतरे में पड़ जाता है; इसी तरह श्री अरिहंत परमात्मा द्वारा प्ररूपित व्रत रूपी लगाम जिसके मन पर न लगी हो, उस मनुष्य का जीवन भी खतरे में पड़ जाता है। असंयमी मनुष्य संमय की तो हानि करता ही है; पर वह दूसरों के जीवन को भी बरबाद करता है। एक दिन राजा सुमुख अपने परिजनों के साथ नगर भ्रमण के लिए निकला। वनमाला राजा की सवारी बड़े ध्यान से देख रही थी। राजा जब उसके घर के सामने से निकला; तब दोनों की आँखें चार हो गयीं। आँखों ही आँखों में इशारे हो गये और वह राजमहल में पहुँच गयी। अब वह राजरानी बन गयी। सच ही तो है-निरंकुश .. इन्द्रियाँ और असंयमी मन इन्सान को किस समय गलत मार्ग पर ले जायेंगे; यह कहा नहीं जा सकता। अतः अरिहंत परमात्मा द्वारा प्ररूपित व्रत-माला ही अपने - मार्ग से भटक जानेवाले मनुष्य को सही मार्ग पर ला सकती है। ... जिन शासन में ऐसी व्रतमाला को धारण करनेवाले मनुष्य को । श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित २ Shree Sudharmaswami-Cyanbham Haswami-Cyanbhandar-dimarar-Surat- -- v-umaragvanbhandar.com

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