Book Title: Munisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Rushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust
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की आराधना की स्मृति करवाती है। यहाँपर मंदिर में श्रीपाल मैना ! ४. सुंदरी की खड़ी प्रतिमा भगवान के सामने रंगमंडप में स्थित है।
ठाणा जिले में घोलवड और बोरडी नामक स्थानों पर भी श्रीमुनिसुव्रत स्वामी भगवान के जिनालय विद्यमान है। ( विरार (बंबई) के पास अगासी तीर्थ में भी श्रीमुनिसुव्रत
स्वामी भगवान विराजमान हैं। । आकाश में अगणित तारे हैं। उनमें बारह राशियों के तारे भी * हैं। इन राशियों में परिभ्रमण करनेवाले बारह ग्रह हैं। इसी आकाश
में प्रकाशमान सत्ताईस नक्षत्र भी हैं। यह ज्योतिष्चक्र मेरुपर्वत के चारों ओर गतिमान है। मेरुपर्वत की ऊँचाई को ले कर एक लाख योजन विस्तार वाले जंबूद्वीप में दो सूर्य और दो चन्द्रमा का विधान जैन ग्रंथों में किया गया है।
जन्म लेनेवाला जातक अपना शुभ और अशुभ कर्म साथ लेकर अवतरित होता है; अतः पुण्योदय में शुभ ग्रह तथा पापोदय में अशुभ ग्रहों के प्रभाव के कारण वह सुखी या दुःखी होता है।
शनि ग्रह एक राशि में ढाई वर्ष तक रहता है। यह ग्रह क्रूर, मलिन, आलसी और श्यामवर्णी होने के कारण जातक की जन्म | पत्रिका (कुंडली) में यदि शनिस्थान बलवान न हो तो वह जातक अपने जीवन में अभिमानी और दरिद्री होता है और छल प्रपंच, चोरी, लूटमार आदि के कारण हैरान होता है। यहाँ जातक के रोगी, दुःखी और दिवालिया बनने में शनिमहाराज का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। शनि महादशा में हो, अवान्तर दशा में हो या प्रत्यन्तर दशा में हो, जातक के लिए तकलीफ भुगतना अनिवार्य हैं। सूर्य, चन्द्र, मंगल या अन्य किसी ग्रह के साथ शनि देव यदि)
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he...amichantinामानसुव्रतस्वामाचारत ५०Mwumaraavarchanacom
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