Book Title: Munisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Rushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust
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सिध्दि होती है। २४) ॐ हीं श्रीं अर्ह महावीराय नमः
विधि - इस जाप की एक माला रोज गिनने से धन-संपत्ति आदि की प्राप्ति होती है।
('जैन रत्न चिंतामणि' से साभार उदृत).
.महावीर वाणी जीवाऽजीवा य बन्धो य, पुण्णं पावाऽऽसवो तहा। संवरो निज्जरा मोक्खो, संतेए तहिया नव।।
जीव, अजीव, बंध, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा एवं मोक्ष – ये नव तत्व अथवा पदार्थ है।
अप्पपसंसण-करणं, पुज्जेसु वि दोसगहण-सीलत्तं। वेर धरणं च सुइरं, तिव्वकसायाण लिंगाणि।।
स्वयं की प्रशंसा करना, पूज्य पुरुषों में भी दोष देखने का स्वभाव होना, लम्बे समय तक वैर की गांठ बांधकर रखना - ये तीव्र कषाय वाले जीवों के लक्षण अथवा चिन्ह है।
सेणावइम्मि णिहए, जहा सेणा पण स्सई। एवं कम्माणि णस्संति मोहणिज्जे खयं गए।।
जिस प्रकार सेनापति के मरने के बाद सेना का नाश हो जाता है, उसी प्रकार एक मोहनीय कर्म के क्षय हो जाने के बाद समस्त कर्म सहजता से नष्ट हो जाते है।
ज अन्नाणि कम्मं खवेइ बहुआहिं बासकोडी हिं। तं नाणी तिहिं गुत्तो, खवेइ ऊसासमि तेणं।।
अज्ञानी व्यक्ति तप द्वारा करोडों जन्मों अथवा वर्षों में जितने कर्मों का क्षय करता है, उतने कर्मों का नाश ज्ञानी व्यक्ति तीन गुप्तियों द्वारा एक श्वास मात्र में करता है।
श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरत ७८
Sree Sudhar
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