Book Title: Munisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Rushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust
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। इतने में सिपाही आ गये। उन्होंने माँ-बेटे के बारे में पूछताछ की; तब एक कोढी ने कहा - 'हमने यहाँ से किसी को भी जाते हुए नहीं देखा है; फिर भी आप चाहें तो हमारी तलाशी ले सकते हैं, पर इतना ध्यान रखना कि हम सब कोढी हैं। हमारे कारण आपको भी कोढ रोग हो सकता है।'
यह सुनते ही सैनिक वहाँ से चले गये। कोढियों के साथ रहने से श्रीपाल कोढ रोग से ग्रस्त हो गये; अतः उनकी माता उन्हें छोडकर किसी कुशल वैद्य की खोज में अन्यत्र चली गयी। उन कोढियों ने श्रीपाल को अपना राजा बनाया और उसके लिए दुल्हन की तलाश में आगे बढे। घूमते घूमते वे उज्जयिनी नगरी के बाहर आ गये। उस काल में उज्जयिनी में प्रजापाल राजा राज्य करता था। उसके दो पुत्रियाँ थीं - सुरसुंदरी और मैनासुन्दरी। प्रजापाल बड़ा अभिमानी राजा था। वह मानता था कि वह ही किसी को सुखी या दुःखी बना सकता है; पर मैनासुन्दरी यह मानती थी कि मनुष्य अपने कर्मों से सुखी-दुःखी होता है। जीव पुण्य कर्म से सुखी होता है और पाप कर्म से दुःखी। इस कारण राजा मैना सुन्दरी से नाराज था। उसने मैनासुन्दरी का विवाह श्रीपाल के साथ कर दिया।
प्रातःकाल के समय मयणा अपने पति के साथ जिनमंदिर गयी। वहाँ भक्तिभाव से उसने भगवान की पूजा की। चैत्यवन्दन किया। उसकी भक्ति से चक्रेश्वरी देवी प्रसन्न हुई। उसने उन दोनों को आशीर्वाद दिया। | देवदर्शन के पश्चात् वह गुरु दर्शनार्थ उपाश्रय में गयी। उसने गुरुवन्दन कर गुरु महाराज से धर्मलाभ प्राप्त किया। श्रीपाल का रोग मिटाने के लिए उन्होंने सिद्धचक्र की आराधना का उपदेश
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श्रीमुनिसुव्रतवित्मी चरित ६१ Shree Suanarinerswami-eyeribhramder-Urmal
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