Book Title: Munisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Rushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust

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Page 89
________________ Fin अनुभूत विविध मंत्र 'अ' से 'ह' पर्यंत जितने भी अक्षर हैं, वे सब अचिन्त्य प्रभावशाली हैं। उदात्त-अनुदात्त, स्वरित, सानुनासिक- । निरनुनासिक जो शब्दों के उच्चारण हैं, उन्हें यदि उसी प्रकार से उच्चारित किया जाये; तो वे शब्द मंत्रस्वरूप बन जाते हैं और वे स्व-परहित के कार्य में सहायक बनते हैं। मंत्र अपूर्व शक्तिशाली होता है, इसलिए उसकी साधना गुरूगमपूर्वक ही करनी चाहिये। मंत्र गुप्त विद्या है, इसलिए गुरू. सेवा से ही प्राप्त होता है - सिध्द होता है। एक एक अक्षर में जब.. अचिन्त्य शक्ति है; तब अक्षर समूह रूप सार्थक शब्द में कितनी शक्ति होगी; इसकी तो कल्पना करना भी कठिन है। ' मंत्र की शक्ति में शंका को कोई स्थान नहीं है, पर आज गुरू गम के अभाव में जो मंत्र-तंत्र की किताबें छपती हैं, वे मात्र किताबें रही है। उनमें लेखक का स्वानुभाव, परोपकार का भाव, सच्चरित्रता आदि का अभाव होने के कारण वे लेखक को द्रव्य लाभ देने के अतिरिक्त कुछ नहीं करतीं। 7 आज का मनुष्य दुःखी है, भ्रमित है; इसलिए भटक गया है। सट्टे के कारण, तेजी-मंदी के कारण अथवा ग्रहों के प्रकोप के | कारण उल्टे चक्कर में फंस गया है। यह सब कर्मों की विचित्र गति के कारण हुआ है। यद्यपि कर्मगति विचित्र होती है, फिर भी मन-वचन-काया की एकाग्रतापूर्वक यदि आत्म हितकारक मंत्रो का जप किया जाये; | तो तात्कालिक दुःख से छुटकारा भी हो सकता है। मंत्र कि सिध्दि my N श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित ६५ Shree Sudhale awami-Cyanbhander-ciomara-Surat

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