Book Title: Munisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Rushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust

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Page 96
________________ कियाजाता है। इन नौ पदों का समाहार ही सिध्दचक्र है। ___ संसार में ये नौ पद सर्वोपरि हैं। इनके नामोच्चारण, दर्शन, वन्दन, पूजन, ध्यान आदि से आत्मशुध्दि होती है। इनके सतत जाप से पाप-नाश होता है। अरिहंत-सिध्द देव तत्व हैं, आचार्यउपाध्याय-साधु गुरू तत्व हैं और सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र-तप धर्म तत्त्व है। देव-गुरू-धर्म तत्त्व समावेशक सिध्दचक्र यंत्र की आराधना से आत्म परिणाम निर्मल होते हैं और आराधक स्वयं नवपदमय होता हुआ परम पद को अर्थात् मोक्ष पद को प्राप्त होता है। अनादि काल से अनन्त आत्माओं ने इस यंत्र की आराधना व्दारा अपने शुध्द स्वरूप को प्राप्त किया है और भविष्य में भी अनेक आराधक इसी की सहायता से मंजिल प्राप्त करेंगे। आयंबिल तपपूर्वक की गयी इस यंत्र की आराधना शीघ्र फल प्रदान करती A '- २.तिजयपहुत्त यंत्र श्री अजितनाथ प्रभु के शासन काल में इस भूतल पर एक सौ सत्तर तीर्थंकर भगवान विहरमान थे। उनका आलेखन इस यंत्र में किया जाता है; अतः यह यंत्र अपूर्व महिमा संपन्न है। 1 यह तिजय पहुत्त यंत्र की| २५ | ८० क्षि | १५ | ५० रचना है। इसमें "क्षि प ॐ स्वा ३० | ७५ हा' ये बीजाक्षर हैं। इनसे शरीर स्वा | हा रक्षा और आत्मरक्षा होती है। र : 'हर हुं हः' और 'स र सुं| सः' ये आठ बीजाक्षर अत्यंत ५५ | १० | हा | ६५ ४० प्रभावशाली हैं; प्रभावशाली है; अतः इस यंत्र का b | | ६० ५ Sweee श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित ७२ Alami Ganbbandarmaca. Surat imaradiyanbnandat.com

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