Book Title: Munisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Rushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust

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Page 73
________________ LOTHER aittarprachikni । म कोकण प्रदेश वर्तमान अवसर्पिणी काल में धर्मतीर्थ की स्थापना सर्वप्रथम श्री ऋषभदेव ने की। ये प्रथम राजा, प्रथम मुनि और प्रथम तीर्थंकर थे। इनके पिता का नाम नाभिराज था। मरुदेवी इनकी माता थी। इनके समय में भोगभूमि का रूपान्तर कर्मभूमि में होने लगा था। इन्होंने ही लोगों को सर्वप्रथम असि, मसि और कृषि का ज्ञान दिया। अर्थात् अस्त्र-शस्त्र चलाना, व्यापार करना और खेती करना सिखाया; अंकज्ञान और अक्षरज्ञान सिखाया तथा राजकाज की शिक्षा भी दी। इनके समय में ही सर्व प्रथम जंगल में आग प्रकट हुई और इन्होंने लोगों को आग का सदुपयोग करना सिखाया तथा अनेक प्रकार की कलाएँ सिखायीं। अन्त में केवलज्ञान प्राप्ति के बाद इन्होंने लोगों को धर्ममय जीवन जीना भी सिखाया। इन्होंने ही राजकीय, सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था निर्माण की और लोगों का जीवन सुख-शान्तिमय बनाया। इन्होंने युगलिक धर्म का निवारण किया। इसलिए ये ही आदिनाथ हैं या बाबा आदम हैं। इनका जन्म अयोध्या में और निर्वाण अष्टापद पर्वत पर हुआ था। भरत के नाम से भरत क्षेत्र का नाम भारत वर्ष पड़ा। ये प्रथम चक्रवर्ती थे और इन्हीं ऋषभदेव के पुत्र थे। भारत वर्ष जंबूद्वीप में है और वैताढ्य पर्वत के दक्षिण में स्थित है। इसमें साढे पच्चीस आर्य प्रदेश हैं; शेष भूमि में अनार्य प्रदेश हैं। । यद्यपि भरत क्षेत्र अत्यन्त विशाल है; फिर भी धर्म, जाति, भाषा आदि के कारण इसके कई बार टुकड़े होते गये हैं। अष्टापद तीर्थ की सुरक्षा हेतु सगर चक्रवर्ती के पुत्रों ने जो खाई निर्माण की थी LANZ.. Merika Hindi traile On - - - र श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित ४९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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