Book Title: Munisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Rushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust
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है. एक व्यापारी नगर बन जाने के कारण थाना में राजस्थान,
गुजरात, कच्छ-काठियावाड आदिप्रदेशों से जैन लोग आ आकर बस गये। महाजन लोग दयालु, मिष्टभाषी, शान्त और दानी होते हैं तथा अहिंसा धर्म का पालन करते हैं । 'अहिंसा परमो धर्मः' का सन्देश तीर्थंकर परमात्मा ने दिया है। उनके प्रति भक्ति भाव प्रकट करने के लिए और उनकी आराधना के लिए यहाँ के समाज ने जिनमन्दिरों का निर्माण किया।
पहला मन्दिर श्री आदिनाथ भगवान का है। इस मन्दिर की। सभी प्रतिमाएँ रमणीय और चित्ताकर्षक हैं। इनके दर्शन से
आराधक के मन में धर्मभावना जागृत होती है। इसी मंदिर के एक - भाग में माणिभद्रवीर का छोटासा मन्दिर है। श्रीमाणिभद्रजी प्रत्यक्ष चमत्कारी और मनोकामना पूर्ण करनेवाले हैं।
दूसरा मन्दिर श्रीमुनिसुव्रत स्वामी भगवान का है। इस ... मन्दिर का निर्माण रेलविहारी मुनि शान्तिविजयजी के उपदेश से ;
हुआ। वे आत्मारामजी (विजयानन्दसूरिजी) महाराज के शिष्य
थे। वे बड़े विद्वान, तार्किक तथा जैन सिद्धान्तों के मर्मज्ञ थे। . उनकी कृपादृष्टि थाना पर ज्यादा थी।
अपने स्वरोदय तथा प्रश्नतंत्र के आधारपर उन्होंने यहाँ के लोगों से कहा कि यदि इस भूमि पर श्रीमुनिसुव्रत भगवान का मन्दिर बन जाये तो यह संघ के लिए श्रेयस्कर होगा। श्रीसंघ ने उनकी बात सहर्ष मान ली और मन्दिर का निर्माण कार्य शुरु किया।
कुछ समय पश्चात् खरतरगच्छीय आचार्य श्रीऋद्धिसूरीश्वरजी महाराज का थाना में आगमन हुआ। वे शुध्द चारित्र पालक
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___ श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित ५३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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