Book Title: Munisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Rushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust
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ऐसी शक्ति प्रदान करो, जिससे हम विषय विकारों से मुक्त होकर आत्मसुख प्राप्त करें । "
" हे गुणसागर ! हम आपके गुणोंकी बारबार अनुमोदना करते हैं और आपसे प्रार्थना करते हैं कि भव-भव में हमें आपका स्मरण बना रहे और आपकी चरण सेवा प्राप्त हो ।
""
इस प्रकार प्रभु की स्तुति कर के इन्द्र महाराज ने प्रभु को पुनः माता पद्मावती के पास ले जाकर रख दिया और उन्हें पुनः पुनः वन्दन करते हुए वे देवलोक में चले गये ।
राजा सुमित्र ने भी प्रभु का जन्मोत्सव 'धूमधाम से मनाया । सारे नगर में खुशियाँ छा गयी । नामकरण संस्कार के समय प्रभु का नाम मुनिसुव्रत रखा गया; क्योंकि भगवान जब गर्भ में थे, तब माता के मन में व्रत - नियम और दान-शील, तप आदि का पालन करने के अनेक शुभ भाव हुए थे ।
भगवान जन्म से ही चार अतिशय सम्पन्न और तीन ज्ञानयुक्त थे। धीरे धीरे दूज के चंद्रमा के समान वे बड़े हुए और युवावस्था को प्राप्त हुए। माता-पिता से प्रभावती सहित अनेक कन्याओं के साथ उनका विवाह किया। कुछ समय बाद प्रभावती ने योग्य समयपर एक पुत्ररत्न को जन्म दिया। उसका नाम सुव्रतकुमारं रखा गया ।
भगवान के प्रभाव से राज्य में सुखशान्ति थी । प्रजाजनों में भाईचारे का भाव था । दुराचार का कहीं नामोनिशन नहीं था । राजा सुमित्र ने प्रभु का राज्याभिषेक कर दिया था। प्रभु कुशलतापूर्वक राज्य संचालन करने लगे ।
इस प्रकार राज्य संचालन करते हुए प्रभु को पन्द्रह हजार
Shree Sudharnaswami Gyanbhश्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित २५
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