Book Title: Munisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Rushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust

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Page 51
________________ आता है; तब हमारा मस्तक अपने आप आपके कदमों में झुक जाता है।' ___ 'जिस आराधक ने आपका प्रक्षालन और पूजन किया है, आँखों से बार बार दर्शन किया है, जीभसे गुणगान किया है और कानों से आपका उपदेश सुना है; सचमुच उसीका जीवन धन्य है, वह बधाई का पात्र है।' : 'हे कालजयी! आपने कालचक्र पर विजय प्राप्त कर ली; पर हम तो काल के गुलाम हैं। कालचक्र के अनुसार हमें नाना पर्याय धारण करके जन्म-मरण धारण करना पड़ रहा है।' ___'हे देवाधिदेव! हम देव हैं। पौद्गलिक सुख के साधन तो हमारे पास चक्रवर्ती से भी ज्यादा है, फिर भी हम सुखी नहीं हैं। क्या कभी नाग से अमृत, सूर्य से शीतलता प्राप्त हो सकती है? कभी नहीं। इस पौद्गलिक साधन सामग्री से तथा इससे उत्पन्न राजसिकता व तामसिकता से आज तक किसी भी जीव को शान्ति-समाधि तथा समता प्राप्त नहीं हुई है।' .. 'हे नाथ! आप शान्ति के सागर हैं और अहिंसा, संयम और .: तप का मूर्त रूप हैं। आप ही कृपा सिंधु हैं। हम तो मात्र आपकी दया चाहते हैं और आपसे यही प्रार्थना करते हैं कि भव भव में हमें : आपके चरणों की सेवा मिलती रहें।' । N श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित २७ varmi-Gyanibhandar-Umara,Surat Shree ragyinbhandar.com

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