Book Title: Munisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Rushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust
View full book text
________________
.
शकुनिका विहार सम्यक्त्व मूल देशविरति धारण करके उस अश्व ने जिस स्थान पर अनशन करके देहत्याग किया था; उस स्थान पर राजकुमारी सुदर्शना ने 'शकुनिका विहार' नामक जिनमन्दिर बनवाया था। उस मन्दिर में उसने श्रीमुनिसुव्रत स्वामी भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी। उसका वृत्तान्त आगे दिया जा रहा है।
वैताढ्य पर्वत के दक्षिण में गगनवल्लभ नगर था। वहाँ का राजा था अमितगति। उसकी रानी का नाम जयसुन्दरी था। उसके एक पुत्री थी। उसका नाम था विजया। वह रूप गुण संपन्न थी। राजा रानी ने उसे अच्छा पढाया लिखाया और धार्मिक अभ्यास भी करवाया।
एक बार अपनी सखियों के साथ वह वैताठ्य पर्वत की उत्तर दिशा में घूमने गयी। रास्ते में उसे कुक्कुट सर्प दिखाई दिया। वह सर्प बड़ा भयंकर था। राजकुमारी ने उसे तीर चलाकर मार डाला।
आगे रत्नसंचय नगर आया। वहाँ श्री शान्तिनाथ भगवान का रमणीय मन्दिर था। वहाँ का राजा सुवेग उस मंदिर में हमेशा पूजा पाठ किया करता थी। राजकुमारी उस मंदिर में पहुँची। उसने
भक्तिभाव से भगवान के दर्शन किये। भगवान की आंगी (श्रृंगार) - देखकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई। उसका सम्यक्त्व निर्मल हुआ।
वहाँ से वह दूसरे मंदिर में गयी। वह श्री ऋषभदेव भगवान का मंदिर था। वहाँ इन्द्र-इन्द्राणी और उनके देवी देवता प्रभु की भक्ति कर रहे थे। देवों का भक्ति नृत्य वह तन्मयता से देखने लगी। उस समय किसी अप्सरा की एक पायल उसकी गोद में पड़
.
.
.
..
।
श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित ४१ Shree Sidharthaswami-yambhandar
-umarasuahbhandar.com