Book Title: Munisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Rushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust

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Page 48
________________ फिर भी यह हमारी यह ताकत भौतिक है। इससे आत्मा का अधःपतन होता है; अतः आपसे आत्मिक शक्ति की याचना करते है। यह संसार उपादेय नहीं, हेय है। विषयभोग विष से भी भयंकर हैं। ये जन्म जन्म में आत्मा को मारते हैं - दुर्गति में डालते है; अतः आपकी शरण ही स्वीकार्य है। इस असार संसार में यदि कोई सारभूत तत्व है, तो वह आपका स्तवन और कीर्तन ही है। • आपके ध्यान-स्मरण और वन्दन-पूजन से ही आत्मा का कल्याण .... होता है।" ___“हे प्रभो! इस संसार में उन्हीं का जीवन धन्य है; जो आपके ।' दर्शन करते हैं; आपकी पूजा करते हैं और आपको हृदयकमल में । । प्रतिष्ठित करते हैं। आपका स्मरण करनेवाले देव-दानव और मनुष्य तथा तिर्यच भवान्तर में भी सुख प्राप्त करते हैं।" "हे संसार-तारक! वही प्राणी इस संसार समुद्र से पार होगा, ... जो अपनी आँखों से आपके दर्शन करेगा। हाथ जोडकर ललाट से आपको वन्दन करेगा, आपकी पूजा करेगा और जीभ से आपका '' गुणगान करने के साथ कानों से आपके वचनामृत का पान ... करेगा।" "हे परमात्मा! आपके गुण स्मरण से मन की वक्रता, आँखों ५. के विकार, हृदय की क्रूरता आदि दुर्गुण खत्म हो जाते हैं। आपके केवल ज्ञान से आलोकित अहिंसा, संयम और तप इन तीन रत्नों की आराधना से प्राणियों का जीवन वैरमुक्त और धन्य बनता है। "रूपवती ललनाओं के सहवास से प्राप्त विषयसुख किंपाक .. फल के समान हमारे लिए आत्मघाती है। हे सर्वशक्तिमान! हमें Shree Suomanaswami Gyanbhand श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित २४ MAMANLuimaragwanbhandar.com

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