Book Title: Munisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Rushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust

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Page 38
________________ कारण आत्मा का तेज और पुण्य खत्म हो जाता है और मनुष्य मानसिक और शारीरिक व्याधियों से ग्रसित हो जाता है । ये अशुभ द्रव्य स्थानक हैं । जिनमंदिर, उपाश्रय, पाठशाला, आयंबिल भवन आदि शुभ द्रव्य स्थानक हैं। इनके कारण मनुष्य का आध्यात्मिक विकास होता है और पुण्य बढ़ता है। भावस्थानक के कारण पुराने पापों का नाश होता है और कर्मों का आसव-बंद होता है । भाव स्थानकों से कर्मों का संवर होता है और निर्जरा होती है । अतः आराधकों के लिए शुभ द्रव्य स्थानक और भाव स्थानक सर्वदा उपादेय है । , बीस स्थानक भाव स्थानक हैं। इनमें से अरिहन्त, सिध्द और जिनेश्वर ये तीन देवतत्त्व है। आचार्य स्थविर, उपाध्याय, मुनि, ब्रह्मव्रतधारी, संयमधारी तथा गौतम स्वामी गुरु तत्त्व हैं और प्रवचन, ज्ञान, दर्शन, विनय, चारित्र, क्रिया, तप, नूतन ज्ञान, श्रुत तथा तीर्थ धर्मतत्त्व हैं। इस प्रकार इन बीस स्थानकों की आराधना देव, गुरु, और धर्म की ही आराधना है । जिस तरह किसी इमारत की दृढता के लिए नींव, खंभे और गाडर की दृढता आवश्यक है, इसी प्रकार आत्मोन्नति के लिए देव, गुरु और धर्म की शुद्धता अत्यन्त आवश्यक है । देव तत्त्व की आराधना नींव है, गुरु तत्त्व की आराधना स्तंभ है और धर्म तत्त्व की आराधना इन स्तंभो का जोडनेवाली गाडर के समान है । देव और 'गुरु की आराधना - उपासना से कर्मों का संवर होता है और धर्म तत्त्व की आराधना से पाप कर्मों की निर्जरा होती है । बीस स्थानकों में पहला अरिहंत पद है। इस पद की आराधना करते समय साधक सोचता है कि मैं स्वयं अरिहंत स्वरूप श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित १४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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