Book Title: Munisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Rushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust

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Page 40
________________ समिति तथा तीन गुप्तियों का अर्थात् अष्ट प्रवचन माता का पालन करते हैं। इसी प्रकार वे पाँच इन्द्रियों को अपने नियंत्रण में रखते हैं, शील की नौ वाडों की रक्षा करते हैं और चार प्रकार के कषायों से मुक्त होते हैं। वे हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन और परिग्रह इन पाँचो पापों से सर्वथा मुक्त होते हैं। चौथे पद में ऐसे आचार्य पद की आराधना की जाती है । अब आगे आता है - स्थविर स्थानक । वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध और तपोवृद्ध मुनि स्थविर कहलाते हैं। पाँचवे पद में इनकी आराधना की जाती है । छठे स्थान में हैं उपाध्याय । पंच परमेष्ठी में इनका स्थान चौथा है। उपाध्याय पद के बारे में श्री राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज । फरमाते है - उवज्झाय महागुणी, चौथे पद से जेह । आचारिज सरिखा, हुं वन्दु धरी नेह । । परमारथ पूरा, कूडा नहीं जस वेण । सुख पामे चेला, देखता जस नेण । । उपाध्याय पद वंदिये, हरे उपाधि जेह । सूरीश्वर पद योग्य है, स्वाध्याये सुसनेह । । मूरख शिष्य ने शीखवे, महाबुद्धि बलवन्त । आगम सूत्र उच्चारवा, स्वर वर्णादिक खन्त । । अतिशय ठाणांगे कहया, जेहना सूत्र मझार । सूरिराजेन्द्रे दाखिया, मुनिजन के आधार ।। श्री उपाध्याय भगवन्त मानसिक अध्यवसाय में शिथिल संघ को पठन-पाठन और युक्ति प्रयुक्ति द्वारा धर्ममार्ग में दृढ श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित १६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.urharagyanbhandar.com

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