Book Title: Mohan Charitam
Author(s): Damodar Sharma, Ramapati Mishra, Raghuvansh Sharma
Publisher: Jain Granthottejak Parshada
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________________ (410) मोहनचरिते षोडशः सर्गः। [ उत्तरજીતવાની ઈચ્છા કરતો નથી, કોઈ જાતને વ્યવહાર ( લેવડ દેવડ ) કરતો નથી. सने (न दूयते ) पोते मे पामता नथी; ते वीर पुरुषामा अग्रेसर पाताना पूर्व सना भनि। ( छ्यति ) नाश 3रे छ. 28. यः क्षमाश्रमणो घोरअपराधेपि मृष्यति / भविष्यत्कर्मजालं स न मनागपि नह्यति // 30 // 2 क्षमावाणी भुनि, ये भोट! 2552 / 5 7 // छत 555 ( मृष्यति ) सहन हरे छे, ते थाउi 55 भावी माने ( न नह्यति ) मयत नथी. 30. अन्वहं युज्यते यस्तु स्वात्मलाभेन तृप्यति / . स्वाध्याये संयसत्येष साधुरन्यस्तु वञ्चकः // 31 // निरंतर ( युज्यते ) योगसाधन अरे छ, सामानी प्राप्तिथी (तृप्यति) तृत याय छ भने स्वाध्यायमा ( संयसति ) प्रयास रे छे ते साधु उपाय; બીજા તે વંચક સમજવા. 31. भावारिवर्ग सततं यः सुनोति पदे पदे। स संस्पृणोति स्वं चान्यमन्यस्तु तुदते वृथा // 32 // साप शत्रुयान उगले उगले ( सुनोति ) पंडन 3रे छे ते पातानु (संस्पृणोति ) पासन अरेछ भने मालयातुं 55 पासन 3रे छ. मीलया तो वृथा (तुदते) मे पामे छ. 32. महत्सूब्जति यो धन्यो ग्रामं ग्रामं च घूर्णति / इहामुत्र भवे प्राज्ञः स एव स्फुरति ध्रुवम् // 33 // रे ५न्य भुनी मायानी पासे ( उब्जति ) यान ( सरसत) | भने गामे ॥म (घूर्णति ) 52 छ ( विहा२ अरे छ) ते प्राश, 20 सव मन ५२२१मा ( स्फुरति ) शमे छ. 33.. योगैः समितिगुप्त्याद्यैः प्रवज्यां हि रुणद्धि यः। विनक्ति च प्रपञ्चेभ्यो न स खिन्ते कदाचन // 34 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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