Book Title: Mohan Charitam
Author(s): Damodar Sharma, Ramapati Mishra, Raghuvansh Sharma
Publisher: Jain Granthottejak Parshada

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Page 413
________________ (409) चरितम्. ] મહિનચરિત્ર સર્ગ સળ. जयन्तु तपसा कर्म नो प्रसर्पन्तु दुर्मतिम् / आधादिदूषितं भक्तं नादन्तु संकटेऽपि हि // 25 // तपश्चर्याव: भीनी (जयन्तु ) 4 श्री. भतिवाणामानी पासे 59 (न प्रसर्पन्तु ) नया नहि. आधी हाथी दूषित थयेसा सातने सं32मा 51 ( न भदन्तु ) पाये। नी. 25. . विनये दोग्धि यो नित्यमी? दीक्षाप्रदं गुरुम् / सोचिरेण कृतं कर्म दाति नास्त्यत्र संशयः॥ 26 // र विनयने ( दोग्धि ) प्रात 2 छ, दीक्षा सपनार गुरुनी ( ईट्टे) स्तुति 3रे छ ते थोड। १५तमा पोतानां भाने ( दाति ) छी ना छ, समां बाई संशय नथी. 26. स्वपिति निजकृत्येषु जागर्त्यर्थान्तरे तु यः। इह लोके परत्रापि न चकास्ति स दुर्मतिः // 27 // 2 पोताना 12 // योग्य आय ४२वामा ( स्वपिति ) पाणसु थाय छ मने मी आभा ( जागर्ति ) सावधान 29 छ, ते भति मा सो मने ५२मा 55 ( चकास्ति ) शमत नथी. 27. जुहोत्याश्रमगान्भक्त्या पितृनिव द्विजायजः। शीलं जहाति नो तस्य यशो वेवेष्टि भूतलम् / / 28 // . બ્રાહ્મણો ભક્તિથી જેમ પિતૃઓને તૃપ્ત કરે છે તેમ પિતાના આશ્રમમાં यावसामान न माननना पहा। मापी ( जुहोति ) तृत रे छ, मने पोताना शासन ( जहाति ) त्याग र नथी तेनी हीर्ति माथी पृथ्वीमा (वेवेष्टि ) व्यात थाय छ. 28. यः कदापि प्रमादेन न दीव्यति न दूयते / स साक् प्राकृतकर्माणि छ्यति वीरवराग्रणीः // 29 // स प्रमाथी 51 ( न दीव्यति ) / 2 नथी, मानने 52 P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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