Book Title: Mahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Amrutrasashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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________________ // गुरुदेव प्रभु श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरि सद् गुरुभ्यो नमः // सुविशाल गच्छाधिपति राष्ट्रसंत श्रीमद्विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. "मधुकर" / जिनशासन विश्व में अनादि से जयवंत रहा है। अनेकानेक जिनशासन के ध्रुवतारकोने स्वयं की प्रज्ञा शक्ति द्वारा इसे प्रकाशमान किया है। महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी म.सा. ऐसे ही ध्रुवतारक समान हुए है। जिन्हें षड्दर्शन का सम्पूर्ण ज्ञान था / उनकी प्रतिभा अद्भुत एवं अलौकिक थी / दर्शनशास्त्र की प्रत्येक विद्या में उन्होंने समग्र जगत को विशिष्ट दिशा निर्देश देकर बोध प्रदान किया है। अध्यात्म, तत्व, न्याय, कर्म, योग आदि अनेक विषयों के परमज्ञाता ऐसे समर्थ ज्ञानधनी की गंगोत्री में गोते लगाकर तत्वज्ञान का आलेखन ममाज्ञानुवर्ती वयोवृद्ध साध्वीजी श्री भुवनप्रभाश्रीजी की सुशिष्या साध्वीजी श्री अमृतरसाश्रीजी ने बहुत ही गहनता से सम्पन्न किया है। 9 अध्यायों मे विभाजित यह सुंदर-सुगम विश्लेषण पठनीय-मननीय है। यह आलेखन कर उन्होंने PH.D. पद प्राप्त किया है, जिससे समुदाय का गौरव बढ़ा है। इनको प्राप्त सफलता की मुझे अतिव प्रसन्नता है। इस प्रसंग पर मैं साध्वीजी श्री अमृतरसाश्रीजी को बहुत अभिनंदन एवं धन्यवाद देता हूं | इनकी जीवन शैली तदनुरूप बन उज्जवल - उन्नति पथ आगे बढ़े, यही अभ्यर्थना .... भी 7-monu चन 2 मर. 73/20/2013 Shri Raj Rajendra Tirth Darshan Jayantsen Museum, Mohankheda Tirth adhukar... || Rajgadh-454116 (Dist: Dhar) (Phone : 07296-235320) Jairt Education Intemational www.jainelibrary.org