Book Title: Mahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Amrutrasashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 15
________________ गुरुकृपाद्दष्टि अशांत से शांत, नीरस से सरस दुःख से सुख बिन्दु से सिन्धु पतन से उत्थान चरम से परम उदय से विकास बिज़ से वट वृक्ष MHIJigion शून्य से सर्जन! इन के पीछे बल है गुरुकृपा ! गुरुकृपा के संबल से प्रारम्भिकता क्रमशः। उत्तरोत्तर उन्नति, प्रगति, श्रेय एवं आत्मकल्याण की ओर से जाती है। जिसका अध्ययन, मनन, चिंतन के वक्त में प्रस्तुत किया गया है मेरी कलम से ! अभ्यास्थार्थी शोधप्रबन्धकों के लिए यह तो एक सागर में से गागर समान ___फूल नहीं पर पंखडी के रुप में प्रयास हे मेरा...! गुरुदेव के प्रति दिल में रही हुई श्रद्धा, भक्ति, आस्था, समर्पण, बहुमान स्वरुप प्राप्त गुरुकृपा एवं आशीर्वाद का ही फल है, जो पाठकों के सन्मुख प्रेसित है। यह शोधप्रबंधग्रंथ....! Agat TouPebanutsorbedyo

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