Book Title: Mahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Author(s): Bhagwati Prasad Khetan
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 11
________________ प्रस्तावना : ९ वैठकर एक वृक्ष ( शाल ) के नीचे तप किया, जहाँ उन्हें सम्यक्ज्ञान की प्राप्ति हुई । बुद्ध ने पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ज्ञान प्राप्त किया था । बुद्ध के उस आसन का नाम "बोधिमंड" प्रसिद्ध हुआ । उनका अंकन आरम्भिक बौद्ध कला में बहुत मिलता है, जिसकी पूजा का बड़ा प्रचार हुआ । बोधिमंड तथा बुद्ध से संबंधित बोधिवृक्ष, धर्मचक्र, स्तूप आदि की ही पूजा पहले होती थी । बुद्ध की मानुषी मूर्तियों का निर्माण बाद शुरू हुआ । उसके पहले तीर्थकरों की मानुषी प्रतिमाएँ अस्तित्त्व में आ चुकी थीं । जैन सर्वतोभद्र प्रतिमाओं की तरह ही बौद्ध मूर्तियों का निर्माण बोधगया आदि स्थानों में उत्तर - गुप्तकाल में हुआ । में चैत्य वृक्ष की पूजा जैन-धर्म का एक विशेष अंग बन गई । विभिन्न तीर्थंकरों से संबंधित चैत्य वृक्षों के विवरण जैन साहित्य में उपलब्ध हैं । ऐसे तरुवरों में कल्पवृक्ष, शाल, आम्र आदि वृक्षों को महत्त्व मिला और उनका प्रदर्शन तीर्थंकर प्रतिमाओं तथा उनके शासन देवताओं के साथ किया जाने लगा । चैत्य वृक्ष ही मंदिरों के आरम्भिक रूप में मान्य हुए । यद्यपि आधुनिक अर्थ में प्राचीनतम जिन-मंदिरों के स्वरूप का स्पष्ट पता नहीं है, पर इतना कहा जा सकता है कि कुछ देवायतन ईसा से कई सौ वर्ष पूर्व अस्तित्व में आ चुके थे । लिच्छवियों के एक प्राचीन ज्ञातृकुल में बिहार की वैशाली नगरी के - समीप कुण्डग्राम ( आधुनिक वासुकुण्ड ) में ई० पू० ५९९ में भगवान् महावीर का जन्म हुआ । उनके पिता सिद्धार्थ इस कुल के मुखिया थे । महावीर की माता त्रिशला वैदेही वैशाली के नरेश चेटक की बहन थीं । प्राचीन जैनग्रन्थों में महावीर स्वामी को "विदेह कुमार " तथा "वैशालिक " नाम भी दिये गये हैं । उन्होंने दक्षिण बिहार के पर्वतीय तथा बांगलिकप्रदेश के भ्रमण में अनेक वर्ष बिताए। इससे यह स्वाभाविक था कि वह प्रदेश महावीर के उपदेशों का विशेष क्षेत्र होता । जैन अनुश्रुति के अनुसार राजगृह नगर महावीर को सबसे अधिक पसंद था । उन्होंने चौदह वर्षावास राजगृह तथा नालंदा में किये । राजगृह में महावीर के पूर्ववर्ती तीर्थंकर मुनिसुव्रत का भी जन्म हुआ था । मुनिसुव्रत का नाम मथुरा से प्राप्त द्वितीय शती की एक प्रतिमा पर उत्कीर्ण मिला है । प्राचीन साहित्यिक विवरणों के अनुसार भगवान् महावीर का निर्वाण पावापुरी में हुआ। उस समय वे ७२ वर्ष के थे । पावा के अभिज्ञान के -संबंध में विवाद है । कुछ विद्वान वर्तमान नालंदा जिले में स्थित पावा को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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