Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad
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[पृ० ९] स्वामी पण आ विनंति सांभळीने पण हा के ना न कहेतां मौन रह्या. गोशाळक पण पोताना मनथी भगवाननो शिष्य बनीने भिक्षा द्वारा पोतानो निभाव करतो भगवान- सामीप्य छोडतो नथी. हवे बीजा मासखमणना पारणे भिक्षा माटे गोचरीए निकळेला भगवान आनंद नामना गृहपतिना घरमा प्रवेश्या. तेणे खाद्यविधि द्वारा भगवानने पारणुं कराव्यु. त्रीजा मासखमणना पारणे सुनंदना मंदिरे भगवाने सर्वकामगुणित आहारवडे पार' कयु. हवे चोथा मासखमणनो नियम स्वीकारीने भगवान रह्या छे. हवे चोमासुं पूरुं थवा आव्यु अने कार्तिक पूनमनो दिवस आवतां घणा दिवसनी सेवाने लीधे भगवाननो स्नेहभाव जाणीने गोशाले तेमने पूछथु के, हे भगवन् ! आवा वार्षिक महोत्सव वखते आजे हुं भोजनमां शुं मेळवीश ? आ वखते जिनवरना शरीरमां लीन थईने रहेलो सिद्धार्थ व्यंतर बोल्योहे भद्र ! आजे तने खटाशवाळो कोदरानो भात मळशे अने दक्षिणामां खोटो रूपियो मळशे. गोशालक आ वात सांभळीने सूरज ऊग्यो त्यारथी मांडीने तमाम आदर साथे ऊंचानीचा तमाम घरोमां भिक्षा माटे भमवा लाग्यो. ज्यां ज्यां जाय छे त्यां त्यां कांजीमां कालवेलो कोदरानो भात ज मळे छे. हवे रोंढो थवा आव्यो अने गोशालकने भूखतरस पण खूब लागी एथी ते हेरान थयेलो, ज्यारे बीजं कई खावानुं मळतुं नथी त्यारे एक लुहारे पोताने घरे लई जईने आंबलीना पाणीमां भींजवेलो कोदरानो भात तेने जमाड्यो अने जमी रह्या पछी छेल्ले तेने दक्षिणामां एक रूपियो पण आप्यो. ए दक्षिणा तेणे लीधी पण विशेषता ए हती के ए रूपियाने तेणे बजारमा बताव्यो
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