Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 115
________________ ११० गळती दुस्सह कणिकाओ-टीपां-स्वामीना-जगगुरुना-शरीरमां गाढरीते चुभवा लागी. २ ___एक तो सहज रोते महामहिनानी टाढ खुब दुस्सह अने सखत होय छे ज. तो पछी शत्रुनी पेठे ऊभी थयेल आ दुष्ट व्यंतरीनी शक्तिद्वारा वरसती टाढनुं शुं कहेवू. ३ एवी टाढनी वेदनाथी त्रास पामेला-घवायेला-थीजी गयेलासामान्य माणसनुं तो आय शरीर फाटो जाय-चीराई जाय पण भगवाननुं आयुष्य निरुपेक्रम होवाथी तेमने ए शीत शरीर उपर कशी असर करतुं नथी. ४ ___ आ रीते रातना चारे पहर भगवानने शीत-टाढनो भारे दुस्सह उपसर्ग थयो अने सहतां सहतां संसारनो-रागद्वेषनो नाश करनारुं धर्मध्यान जिनने-भगवानने विशेष रोते लागी गयु.५ त्यार पछी आवी दुःसह पीडाने सहन करवाथी विशेष कर्मनो क्षय थतां भगवाननुं अवधिज्ञान विकस्युं अने ते ज्ञानद्वारा भगवान आखा लोकने जोवा लाग्या. पहेलां पण भगवानने गर्भमां हता त्यारथी पण [पृ० ६७] अवधिज्ञान तो हतुं पण ते अवधि मात्र देवभवकाल मात्र हतुं एटले देवभवमा जे जातनी शक्तिवालुं अवधिज्ञान होय तेटली ज शक्तिवालुं हतुं अने श्रुतसंपदामां भगवानने अग्यार अंगोनी विद्यानी जाण हती. हवे ज्यारे कटपूतना व्यंतरीओ जाण्यं के भगवान तो अकंप छे, जरा पण ध्यानमांथी १ कोइ पण घातक उपायथी जे आयुष्य तुटे नहीं ते आयुष्य निरुपक्रम कहेवाय. Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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