Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 138
________________ ...१३३ पहेलांतो ते दर्शनमात्रथी ज-पोतानी जातने देखाडवा मात्रथी ज माणसने विक्षिप्त-चंचळ.करी नाखती. तो पछी उत्कृष्ट शृङ्गारना कपडामां ते सज्ज थयेली सुन्दर देखाती होय त्यारे तो तेनी वळी शी वात ! एटले एवी अवस्थामां तो माणसने लुब्ध करी ज नाखे. ३ . हवे आ तरफ ते वेसियायण धन कमावा माटे विविध प्रकाग्नु वणज वेपार करवा लाग्यो. अकवार ते घोनू-घीना डबानुं गाडं भरीने मित्रोनी साथे चम्पा नगरीए गयो. ते वखते ते नगरीमां कोई महोत्सव चालतो हतो. नगरना लोको उत्तम घरेणांगाठां पहेरी शरीरने शणगारी उत्तम पट्टण-नगरमां बनेलां चीरांशुक वगेरे कपडां पहेरी ओढी पोतानी इन्छा प्रमाणे स्वच्छन्दे-तरभेटाओमां, चोकोमां अने रासडा लेवानी जग्याओमां स्त्रीओ साथे विलास करता हता. आ रीते मोज करता नगरना लोकोने जोई वेसियायणने विचार थयो के, अहो ! आ लोको आम केवी मोज माणे छे, हुं पण आ प्रमाणे शा माटे मोज न माणुं ? मारी पासे पण केटलंक मोजमाणी शकुं एटलुं धन तो छे. ए धनने साचवी राखीने-राखी मूकीने-शु कर, छे ! धर्मस्थानमां दानमां अने भोगोपभोगमां धनने वापर ए ज तेनुं फळ छे अने ए रीते धन वपराय तो ज ते वखाणवा जोग छे. कहेवामां आवे छे के ---- दान, भोग अने नाश ए त्रण गति धननी छे अर्थात् ए त्रण रस्ते धन जनाई छे. जे दान देतो नथी, तेम भोगवतो नथी तेना धननी त्रीजी गति एटले नाश थई जाय छे. १ भाग्य योगे कोई पण रीते वभव सांपड्यो छतां य जे भोगववा इच्छतो नथी अने दान पण देतो नथी ते धनपालक मूरख छे. २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154